क्रेडिट जोखिम में उधारकर्ता जोखिम, उद्योग जोखिम और जोखिम प्रबंधन संविभाग जोखिम शामिल है। चूंकि यह उद्योग की उधारकर्ता, उधारकर्ता इत्यादि की जांच करता है।
जोखिम प्रबंधन
- ग्रीष्म लहर के जोखिम प्रबंधन के पहलू
- मधुमक्खियों को दर्द जोखिम प्रबंधन होता है
- जीवों में तापमान नियंत्रण काफी देर से अस्तित्व में आया
- भारत की खोज में जंतुओं ने समंदर लांघा था
- समुद्रों में परागण
- कमाल का संसार कुकुरमुत्तों का
- अतिरिक्त जीन से चावल की उपज में सुधार
- समुद्री ज्वालामुखी विस्फोट से पानी पहुंचा वायुमंडल में
- परमाणु युद्ध हुआ तो अकाल पड़ेगा
- साल भर सूखा रहे तो क्या होगा?
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रासंगिकता पर सवाल
- मुफ्त बिजली की बड़ी कीमत
- चांद पर दोबारा उतरने की कवायद
- ऊर्जा दक्षता के लिए नीतिगत परिवर्तन की आवश्यकता
- विद्युत सुरक्षा: राष्ट्र स्तरीय योजना की आवश्यकता
- स्वास्थ्य: चुनौतियां और अवसर
- चबा-चबाकर खाइए और कैलोरी जलाइए
- मानसिक थकान का रासायनिक आधार
- क्या आप कभी कोविड संक्रमित हुए हैं?
- प्राचीन कांसा उत्पादन के नुस्खे की नई व्याख्या
- सौर जोखिम प्रबंधन मंडल से बाहर के ग्रह में कार्बन डाईऑक्साइड
- कई वृक्ष प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर
आपदा जोखिम न्यूनीकरण
भारत एक बहु आपदा प्रवण देश है जहाँ दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे अधिक आपदाएँ घटती हैं. भारत के 29 राज्यों एवं 7 केंद्र शासित प्रदेशों में से 27में प्राकृतिक आपदाओं जैसे चक्रवात, भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ और सूखे जैसी आदि का कहर निरंतर रहता है।
जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय क्षति की वजह से आपदाओंकी तीव्रता एवं आवृत्ति भी अधिक हो गई है जिससे जान – माल की क्षति अधिक हो रही है. इसके अतिरिक्त देश का एक तिहाई हिस्सा नागरिक संघर्ष एवं बंद आदि से भी प्रभावित रहता है।
किसी भी आपदा में व आपदा के बाद बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और ऐसी वास्तविकताओं को अक्सर योजनाओं एवं नीति निर्माण के समय में अनदेखा जोखिम प्रबंधन कर दिया जाता है ।
आपातकालीन तत्परता और प्रतिक्रिया
राष्ट्रीय क्षमता और यूनिसेफ के तुलनात्मक फायदे के साथ आने से आपातकालीन तैयारी और राहत एवं बचाव तंत्र द्वारा आपातकालीन एवं मानवीय संकट में प्रभावी रूप से सामना करने में मदद मिलती है । यूनिसेफ बच्चों के लिए अपनी मुख्य प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और आपातकालीन तैयारियों पर सरकार के अनुरोधों को पूरा करने हेतु अपनी क्षमता को निरंतर विकसित करता है।
सरकार में यूनिसेफ की मुख्य समकक्ष संस्था
गृह मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यूनिसेफ का मुख्य सरकारी समकक्ष है। अन्य रणनीतिक भागीदारों में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट, शहरी स्थानीय निकाय, थिंक टैंक, सिविल सोसाइटी संगठन, सेक्टोरल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और अन्य संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और विकास संगठन शामिल हैं। आपदा जोखिम में कमी पर काम करने वाले बाल-केन्द्रित गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) समुदाय और क्षमता निर्माण गतिविधियों के प्रमुख भागीदार हैं। मीडिया, विशेष रूप से रेडियो, भी यूनिसेफ के एक महत्वपूर्ण भागीदार की भूमिका निभाता है।
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में जोखिम प्रबंधन - Risk Management in Indian Banking Sector
जोखिम प्रबंधन का अभ्यास भारतीय बैंकों में नया है लेकिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते, अस्थिरता और बाजारों में उतार-चढ़ाव में जोखिम प्रबंधन मॉडल को महत्व मिला है। जोखिम प्रबंधन के अभ्यास के कारण, इसके परिणामस्वरूप भारतीय बैंकों को नियंत्रित करने में बढ़ी हुई दक्षता हुई हैं और कॉर्पोरेट प्रशासन के अभ्यास में भी वृद्धि हुई है। जोखिम प्रबंधन मॉडल की आवश्यक विशेषता आंतरिक और बाहरी जोखिमों को कम करने के लिए बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली उत्पादों विज्ञापन सेवाओं के जोखिम को कम या कम करना है, कुशल जोखिम प्रबंधन ढांचे की आवश्यकता है।
भारतीय बैंकों को विदेशी बैंकों की बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा, अभिनव वित्तीय उत्पादों और जोखिम प्रबंधन उपकरणों
की शुरूआत और विनियमन में वृद्धि के कारण जोखिम प्रबंधन मॉडल या ढांचा तैयार करना है। भारत के बैंकिंग क्षेत्र ने प्रौद्योगिकी, गुणवत्ता इत्यादि के मामले में बड़ी प्रगति की है और तेजी से अपने क्षितिज को विविधता और विस्तार करना शुरू कर दिया है। हालांकि, बढ़ते भूमंडलीकरण और उदारीकरण और बढ़ती प्रगति के कारण इन बैंकों को कुछ जोखिमों का सामना करना पड़ता है। चूंकि बैंकों में जोखिम आय में एक प्रमुख भूमिका निभाता है इसलिए जोखिम अधिक होता है, उच्च रिटर्न होगा। इसलिए जोखिम और वापसी के बीच समानता बनाए रखना आवश्यक है।
आपदा प्रबन्धन
आपदा के खतरे जोखिम एवं शीघ्र चपेट में आनेवाली स्थितियों के मेल से उत्पन्न होते हैं। यह कारक समय और भौगोलिक – दोनों पहलुओं से बदलते रहते हैं। जोखिम प्रबंधन के तीन घटक होते हैं। इसमें खतरे की पहचान, खतरा कम करना (ह्रास) और उत्तरवर्ती आपदा प्रबंधन शामिल है। आपदा प्रबंधन का पहला चरण है खतरों की पहचान। इस अवस्था पर प्रकृति की जानकारी तथा किसी विशिष्ट अवस्थल की विशेषताओं से संबंधित खतरे की सीमा को जानना शामिल है। साथ ही इसमें जोखिम के आंकलन से प्राप्त विशिष्ट भौतिक खतरों की प्रकृति की सूचना भी समाविष्ट है।
इसके अतिरिक्त बढ़ती आबादी के प्रभाव क्षेत्र एवं ऐसे खतरों से जुड़े माहौल से संबंधित सूचना और डाटा भी आपदा प्रबंधन का अंग है। इसमें ऐसे निर्णय लिए जा सकते हैं कि निरंतर चलनेवाली परियोजनाएं कैसे तैयार की जानी हैं और कहां पर धन का निवेश किया जाना उचित होगा, जिससे दुर्दम्य आपदाओं का सामना किया जा सके। इस प्रकार जोखिम प्रबंधन तथा आपदा के लिए नियुक्त व्यावसायिक मिलकर जोखिम भरे क्षेत्रों के अनुमान से संबंधित कार्य करते हैं। ये व्यवसायी आपदा के पूर्वानुमान के आंकलन का प्रयास करते हैं और आवश्यक एहतियात बरतते हैं।
वित्तीय जोखिम प्रबंधन – बढ़ती माँग, पढ़ाई का अच्छा विकल्प
किसी भी आर्थिक स्थिति में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए लगभग सभी बड़े संस्थानों को जोखिम प्रबंधकों की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए वित्तीय जोखिम प्रबंधकों के लिए वित्तीय जोखिम प्रबंधन पाठ्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिससे उन्हें औरों के मुकाबले प्रतिस्पर्धा में बने रहने का अच्छा अवसर मिलता है.
सिटीबैंक, बेंगलुरू में मॉडेल रिस्क मैनेजमेंट टीम में कार्यरत जितेंद्र कौशिक अपना अनुभव बताते हैं, “बैंक के क्रेडिट कार्ड बिज़नेस के लिए क्रेडिट निर्णयों के सांख्यिकीय मॉडेल्स को मान्यता देना हमारा काम होता है.”
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