1. Remittance पर ज्यादा रिटर्न - यूरोप या खाड़ी के देशों में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं. अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं जो डॉलर में कमाते हैं और अपनी कमाई देश में भेजते हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा Remittance पाने वाला देश भारत है. साल 2021 में भारत में Remittance के जरिए 87 अरब डॉलर प्राप्त हुआ था. जो 2022 में डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? बढ़कर 90 बिलियन होने का अनुमान है. 20 फीसदी से ज्यादा Remittance भारत में अमेरिका से आता है. ये Remittance जब भारतीय अपने देश डॉलर के रुप में भेजते हैं तो विदेशी मुद्रा भंडार इससे तो बढ़ता ही है साथ ही इन पैसे से सरकार को अपने कल्याणकारी योजनाओं को चलाने के लिए धन प्राप्त होता है. और जो लोग Remittance भेजते हैं उन्हें अपने देश में डॉलर को अपने देश की करेंसी में एक्सचेंज करने पर ज्यादा रिटर्न मिलता है.
Rupee-Dollar Update: डॉलर के मुकाबले रुपये में ऐतिहासिक गिरावट, जानिए कमजोर रुपये और मजबूत डॉलर से किसका होगा फायदा, किसे नुकसान ?
By: ABP Live | Updated at : 09 Jun 2022 01:20 PM (IST)
Edited By: manishkumar
Rupee-Dollar Update: डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट देखी जा रही है. गुरुवार को तो रुपया एक डॉलर के मुकाबले 77.81 के लेवल तक जा लुढ़का है जो कि रुपया का ऐतिहासिक निचला स्तर है. कई जानकारों के मुताबिक आने वाले दिनों में एक डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर 80 रुपये प्रति डॉलर तक गिर सकता है. दरअसल अमेरिका में बढ़ती महंगाई के मद्देनजर फेडरल रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला लेता है तो भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट से निवेशक पैसा निकाल सकते हैं जिससे रुपया और कमजोर हो सकता है. रुपया इस समय वैश्विक कारणों से साथ घरेलू कारणों से भी गिर रहा है. शेयर बाजारों में गिरावट तो इसके पीछे है ही, ब्याज दरों में बढ़ोतरी के ग्लोबल रुझान के बीच विदेशी फंडों की ओर से बिकवाली जारी रहने से भी रुपये पर दबाव आया है. कच्चा तेल महंगा होने और अन्य करेंसी के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने से रुपया कमजोरी के दायरे में दिखाई दे रहा है.
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पिछले एक साल में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 9.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. साल की शुरुआत में US Dollar के मुकाबले में 73.21 रुपये रहने वाला जहां रुपया अब गिरकर 81.50 रुपये हो गया है. इस बीच अमेरिका में हाई इन्फ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए यूएस फेड द्वारा 2022 के साथ ही 2023 में रेपो रेट समेत अन्य जरुरी दरों में इजाफा जारी रखे जाने की संभावना है. जिसकी वजह से साल की शुरुआत से ही डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट देखी जा रही है. साथ ही इस गिरावट के आगे जारी रहनी की आशंका बनी हुई है.
डॉलर के मुकाबले रुपया के कमजोर होने का मतलब क्या है ?
2017 में आपको एक डॉलर खरीदने के लिए 64 रुपये खर्च करने पड़े थे, लेकिन अब एक डॉलर लेने के लिए आपको 80 रुपये से ज्यादा का भुगतान करना होगा, जो रुपये आज की स्थिति को दिखाता है. इससे यह भी पता चलता है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में सालाना आधार पर करीब 5 फीसदी की गिरावट आई है. दूसरी ओर रुपये की मजबूती का मतलब होता है कि आपको पहले की तुलना में डॉलर खरीदने के लिए कम भारतीय मुद्रा का भुगतान करना होगा.
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रुपये में आई गिरावट आप की EMI में इजाफा कर देती है
डॉलर के मुकाबले में रुपये में गिरावट आने से मार्केट में हाई इन्फ्लेशन शुरु हो जाता है, जिसे कंट्रोल करने के लिए आरबीआई द्वारा रेपो रेट में इजाफा किया जाता है. जिसकी वजह से आप के लोन की EMI में बढ़ोतरी हो जाती है. यानी आप को अपने लोन के एवज में दी जाने वाली EMI के लिए डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? ज्यादा पैसों का भुगतान करना होगा. हाल ही में RBI ने 29 सितंबर को रेपो रेट में एक बार फिर से 50 बेसिक पॉइंट्स का इजाफा किया है.
अगर आप का बच्चा विदेश में पढ़ता है तो आप को इंटरनेशनल एजुकेशन के लिए डॉलर भेजने के लिए ज्यादा भारतीय मुद्रा का पेमेंट करना होगा. INR में गिरावट से खुद को बचाने के लिए विदेशों में पढ़ रहे स्टूडेंट्स को विदेशी बैंक के अकाउंट में पैसे रखने चाहिए. इसके साथ ही अगर आप अपने परिवार के साथ विदेश में घुमने का प्लान बना रहे हैं तो ये ध्यान में रखना होगा कि रुपये में कमजोरी की वजह से आपको ज्यादा राशि का भुगतान करना पड़ेगा.
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उदाहरण के तौर पर नेपाल ने भारत के साथ फिक्सड पेग एक्सचेंज रेट अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट अपनाया है.
डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही होता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें डॉलर देना पड़ता है और जब हम बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट क्या होता है?
आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज रेट कहते हैं. यह एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.
करेंसी का डिप्रीशीएशन तब होता है जब फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर करेंसी की कीमत घटती है. करेंसी का डिवैल्यूऐशन तब होता है जब कोई देश जान बूझकर अपने देश की करेंसी की कीमत को घटाता है. जिसे मुद्रा का अवमूल्यन भी कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया. साल 2015 में People’s Bank of China (PBOC) ने अपनी मुद्रा चीनी युआन रेनमिंबी (CNY) की कीमत घटाई.<
मुद्रा का अवमूल्यन क्यों किया जाता है?
करेंसी की कीमत घटाने से आप विदेश में ज्यादा सामान बेच पाते हैं. यानी आपका एक्सपोर्ट बढ़ता है. जब एक्सपोर्ट बढ़ेगा तो विदेशी मुद्रा ज्यादा आएगी. आसान भाषा में समझ सकते हैं कि एक किलो चीनी का दाम अगर 40 रुपये हैं तो पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे तो अब 80 रुपये हैं. यानी अब आप एक डॉलर में पूरे दो किलो चीनी खरीद सकते हैं. यानी रुपये की कीमत गिरने से विदेशियों को भारत में बना सामान सस्ता पड़ेगा जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा.
डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी बाकी देशों की गिरी है.
यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले कम गिरा है.
रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.
अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.
इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.
विस्तार
डॉलर का चढ़ता भाव अब तक बाकी दुनिया के लिए मुसीबत बना है। लेकिन अब ऐसे संकेत हैं कि इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ सकता है। डॉलर की महंगाई से डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के फिर से खड़ा होने की संभावनाओं पर सवाल उठ रहे हैं। अमेरिकी मुद्रा की मजबूती की वजह से जहां अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान होने लगा है, वहीं विदेशी उत्पादकों का लाभ बढ़ रहा है।
अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में उत्पादित वस्तुएं विदेशी उपभोक्ताओं को महंगी दरों पर मिल रही हैं। उधर विभिन्न देशों की मुद्रा का भाव गिरने के कारण विदेशों में स्थित अमेरिकी कारखानों की कमाई डॉलर के अर्थ में घट गई है। बीते महीनों के दौरान अमेरिकी मुद्रा ना सिर्फ विकासशील देशों की मुद्राओं की तुलना में महंगी हुई है, बल्कि यूरो, जापान के येन और ब्रिटिश पाउंड भी इसकी तुलना में काफी सस्ते हो गए हैं।
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