मुद्रा जोड़ी: EUR / USD (यूरो / अमेरिकी डॉलर)
मुद्रा जोड़ी क्या है: EUR / USD (यूरो / अमेरिकी डॉलर)?
मुद्रा जोड़ी EUR / USD अमेरिकी डॉलर जोड़ी के खिलाफ यूरो के लिए छोटा शब्द है, या यूरोपीय संघ (ईयू) और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसडी) की मुद्राओं के लिए पार है। मुद्रा जोड़ी इंगित करती है कि एक यूरो (आधार मुद्रा) खरीदने के लिए कितने अमेरिकी डॉलर (उद्धरण मुद्रा) की आवश्यकता होती है। EUR / USD मुद्रा जोड़ी का व्यापार “यूरो” के व्यापार के रूप में भी जाना जाता है। EUR / USD जोड़े का मूल्य 1 यूरो प्रति x अमेरिकी डॉलर के रूप में उद्धृत किया गया है। उदाहरण के लिए, यदि जोड़ा 1.50 पर कारोबार कर रहा है, तो इसका मतलब है कि 1 यूरो खरीदने में 1.5 अमेरिकी डॉलर लगते हैं।
चाबी छीन लेना
- EUR / USD जोड़ी एक यूरो खरीदने के लिए आवश्यक अमेरिकी डॉलर की संख्या का प्रतिनिधित्व करती है।
- यह सरकार की नीतियों और जोड़ी के लिए मुद्रा बाजारों में मांग और आपूर्ति के अर्थशास्त्र से प्रभावित है।
मुद्रा जोड़ी की मूल बातें: EUR / USD (यूरो / अमेरिकी डॉलर)
EUR / USD जोड़ी दुनिया में सबसे व्यापक रूप से कारोबार करने वाली जोड़ी बन गई है क्योंकि यह दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के संयोजन का प्रतिनिधित्व करती है। यह एक दूसरे और अन्य मुद्राओं के संबंध में यूरो और / या अमेरिकी डॉलर के मूल्य को प्रभावित करने वाले कारकों से प्रभावित होता है। इस कारण से, यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) और फेडरल रिजर्व (फेड) के बीच ब्याज दर अंतर एक दूसरे की तुलना में इन मुद्राओं के मूल्य को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, जब फेड अमेरिकी बाजार को मजबूत बनाने के लिए खुले बाजार की गतिविधियों में क्या USD एक आधार मुद्रा है हस्तक्षेप करता है, यूरो की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के कारण EUR / USD क्रॉस का मूल्य घट सकता है। इसी तर्ज पर, यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था से बुरी खबरें EUR / USD जोड़ी के लिए कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इटली और ग्रीस में सरकारी ऋण संकट और अप्रवासी बाढ़ की खबर के परिणामस्वरूप यूरो की बिक्री हुई, जिससे जोड़े की विनिमय दर में गिरावट आई।
यूरो मुद्रा का संक्षिप्त इतिहास
मास्ट्रिच संधि के परिणामस्वरूप यूरो मुद्रा 1992 में उत्पन्न हुई । इसे मूल रूप से 1999 में एक लेखांकन मुद्रा के रूप में पेश किया गया था। 1 जनवरी 2002 को, यूरो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में घूमना शुरू हुआ, और कई वर्षों के दौरान, यह यूरोपीय संघ की स्वीकृत मुद्रा बन गया और अंततः बदल दिया गया। इसके कई सदस्यों की मुद्राएँ। नतीजतन, यूरो एकीकृत और बड़ी संख्या में यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह यूरोपीय संघ के सभी सदस्यों के लिए मुद्रा विनिमय दरों और अस्थिरता को स्थिर करने का कार्य करता है। यह विदेशी मुद्रा बाजार में यूरो को सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्राओं में से एक बनाता है, जो केवल अमेरिकी डॉलर के बाद दूसरा है।
26 मार्च, 2018 तक, यूरोपीय संघ के 28 सदस्य देशों में से 19 यूरो का उपयोग करते हैं। ईसीबी के अनुसार, 1 जनवरी, 2017 तक, दुनिया में € 1 ट्रिलियन से अधिक प्रचलन में हैं।
EUR / USD मूल्य चार्ट पढ़ना
एक स्टॉक के लिए एक मूल्य चार्ट के विपरीत जिसमें संकेतित मूल्य सीधे स्टॉक के लिए एक मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है, एक मुद्रा जोड़ी के लिए मूल्य चार्ट पर सूचीबद्ध मूल्य दो मुद्राओं के विनिमय दर का प्रतिनिधित्व करता है । इसलिए, चार्ट का दिशात्मक संकेत आधार मुद्रा से मेल खाता है। पहले के उदाहरण का उपयोग करते हुए, जब कोई व्यापारी 1.50 पर EUR / USD मुद्रा में एक लंबा स्थान लेता है, जैसे ही दर 1.70 तक बढ़ जाती है, यूरो की ताकत बढ़ जाती है (जैसा कि मूल्य चार्ट में संकेत दिया गया है) और अमेरिकी डॉलर कमजोर होता है। अब उसी यूरो को खरीदने में $ 1.क्या USD एक आधार मुद्रा है क्या USD एक आधार मुद्रा है 70 (अधिक डॉलर) लगते हैं, जिससे डॉलर कमजोर होता है और / या यूरो मजबूत होता है।
हालांकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि जोड़ी की आधार मुद्रा निश्चित है और हमेशा एक इकाई का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रकार, सुदृढ़ीकरण और / या कमजोर करने का स्रोत दर में परिलक्षित नहीं होता है। यूरो / अमरीकी डालर की दर बढ़ सकती है क्योंकि यूरो मजबूत हो रहा है या अमेरिकी डॉलर कमजोर हो रहा है। या तो हालत दर (मूल्य) में एक ऊपर की ओर आंदोलन और एक मूल्य चार्ट में एक इसी ऊपर की ओर आंदोलन में परिणाम है।
डॉलर के मुकाबले अभी तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा रुपया, क्या USD के मुकाबले 80 के स्तर पर पहुंच जाएगा INR?
Rupee Vs Dollar: डॉलर के मुकाबले रुपया अभी तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. जानकारों का कहना है कि व्यापार घाटा बढ़ने से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट और उच्च वैश्विक ऊर्जा कीमतों से रुपये में गिरावट आ रही है.
Published: July 12, 2022 9:34 AM IST
Dollar Vs Rupee: इक्विटी बाजारों में कमजोरी के बीच सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया आज 79.57 के नए ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया. यहां तक कि क्रूड ऑयल की कमजोरी भी रुपये को गिरने से नहीं रोक पाई.
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जानकारों के मुताबिक, व्यापार घाटा बढ़ने, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट और उच्च वैश्विक ऊर्जा कीमतों से रुपये में गिरावट आ रही है. आगे यह उम्मीद की जा रही है कि इस सप्ताह रुपये में अस्थिरता बनी रहेगी और यह 79.80-80.05 के स्तर तक जा सकता है.
मुद्रा व्यापारी इस सप्ताह अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़ों और फेडरल रिजर्व के अधिकारियों की टिप्पणियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, क्योंकि वे फेड की आगामी नीति बैठक के परिणाम पर कयास लगा रहे हैं. एक उच्च मुद्रास्फीति रीडिंग फेड के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की अपनी पहले से ही आक्रामक गति को बढ़ाने के लिए दबाव डालेगी.
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, बढ़ते व्यापार घाटे ने भारतीय मुद्रा के मूल्य पर दबाव डाला है. भारत का व्यापार घाटा जून में बढ़कर 25.63 अरब डॉलर हो गया. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए, उच्च आयात के कारण व्यापार घाटा बढ़कर 70.25 अरब डॉलर पर पहुंच गया.
हालांकि, विकास की आशंकाओं का असर तेल पर भी पड़ रहा था. ब्रेंट क्रूड गिरकर 106.04 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया. हाल के दिनों में भारतीय शेयरों की एफआईआई बिक्री थोड़ी कम हुई है, फिर भी वे शुद्ध बिकवाली कर रहे हैं. सोमवार को, उन्होंने शुद्ध आधार पर 170 करोड़ मूल्य की भारतीय इक्विटी बेची है.
भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार को बैंकों से कहा कि वे घरेलू मुद्रा में वैश्विक व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि को देखते हुए भारतीय रुपये में निर्यात और आयात लेनदेन के लिए अतिरिक्त व्यवस्था करें. केंद्रीय बैंक ने एक परिपत्र में कहा, हालांकि, बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के विदेशी मुद्रा विभाग से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी.
बढ़ेगी रुपये की स्वीकार्यता
आरबीआई ने यह एक अच्छा कदम उठाया है. इससे अपतटीय केंद्रों में रुपये को वैश्विक स्तर पर अधिक व्यापार योग्य बनाया जा सकेगा. मुझे लगता है कि एनडीएफ की मात्रा और बढ़ेगी. यह रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापार वाली मुद्रा बनाने की दिशा में एक कदम है. आरबीआई के इस कदम से रुपये की स्वीकार्यता बढ़ेगी. यह लंबी अवधि में डॉलर के उपयोग को भी कमजोर करेगा. इन्हें डॉलर की भागीदारी के बिना सीधे कारोबार किया जा सकता है. इसे और अधिक व्यापार योग्य, स्वीकार्य बनाना. विदेशी खरीदार भारतीय बैंक में वोस्ट्रो खाता खोल सकते हैं और वे भारतीय निर्यातकों को भारतीय रुपये में भुगतान कर सकते हैं. एफएक्स जोखिम विदेशी खरीदार को हस्तांतरित हो जाता है क्योंकि रुपये की राशि तय हो जाती है.
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दुनिया में सबसे ज्यादा चलती हैं ये 5 करेंसी, जानिए इनसे जुड़ी कुछ खात बातें
दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर अलग तरह की करेंसी का चलन है. कुछ रुपए से कमजोर हैं, तो कुछ रुपए के मुकाबले मजबूत हैं.
दुनियाभर में इन करेंसी का चलन सबसे ज्यादा है, व्यापार भी इनमें ही होता है. (फाइल फोटो)
दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर अलग तरह की करेंसी का चलन है. कुछ रुपए से कमजोर हैं, तो कुछ रुपए के मुकाबले मजबूत हैं. आज हम आपको बताएंगे दुनिया भर की ऐसी ही पांच करंसी के बारे में जो सबसे अधिक चलन में हैं. 1934 में फेडरल नोट प्रेस ने एक लाख डॉलर का नोट छापा था, उस पर पूर्व राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन की फोटो नजर आती है. वह अब तक की सबसे ज्यादा कीमत वाला नोट था. अमेरिकी मुद्रा डॉलर आज दुनियाभर में चलती है और ज्यादातर व्यापार भी इसी से होता है. सबसे पसंदीदा मुद्रा डॉलर ही है.
आइए जानते हैं कौन-सी हैं ये 5 करंसी-
1- अमेरिकन डॉलर
अमेरिकन डॉलर संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक मुद्रा है. जिस तरह भारत में 1 रुपए में 100 पैसे होते हैं, ठीक उसी तरह अमेरिका में एक डॉलर में 100 सेंट होते हैं. 50 सेंट के सिक्के को आधा डॉलर कहा जाता है. पच्चीस सेंट के सिक्के को क्वार्टर कहकर बुलाया जाता है. अमेरिका में 10 सेंट के सिक्के को डाइम कहते हैं और पांच सेंट के सिक्को को निकल कहा जाता है. एक सेंट को अमेरिका में पैनी भी कहा जाता है. डॉलर के नोट 1, 5, 10, 20, 50 और 100 डॉलर में मिलते हैं.
कीमत
1 डॉलर= 71.58 रुपए (19 फरवरी 2019)
2- यूरो
यूरो यूरोपियन संघ के 28 में से 18 सदस्य देशों की मुद्रा है. इन देशों को सामूहिक रुप से यूरोजोन कहा जाता है. इन देशों में ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, साइप्रस, इस्टोनिया, फिनलैंड, फांस, जर्मनी, ग्रीस, आयरलैंड, इटली, लग्जम्बर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, पुर्तगाल, स्लोवेनिया, लातविया, स्लोवाकिया और स्पेन शामिल हैं. इन देशों के अलावा पांच अन्य यूरोपियन देश हैं, जो यूरो को अपनी करेंसी के रुपए में इस्तेमाल करते हैं.
यह करेंसी अमेरिका के डॉलर के बाद दुनिया की सबसे अधिक ट्रेड की जाने वाली करेंसी है. इसके साथ ही यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी रिजर्व करेंसी भी है. इस करेंसी का नाम यूरो (Euro) 16 दिसंबर 1995 को रखा गया. ग्लोबल मार्केट में इसे यूरोपियन करेंसी यूनिट के स्थान पर सम मूल्य पर 1 जनवरी 1999 को जारी किया गया.
कीमत
1 यूरो = 80.87 रुपए (19 फरवरी 2019)
3- पाउंड
पाउंड ब्रिटेन की आधिकारिक मुद्रा है. इसका नाम चांदी के एक पाउंड (भार) की कीमत के आधार पर रखा गया. यह एक लेटिन शब्द लिब्रा का अंग्रेजी ट्रांसलेशन है. लिब्रा को रोमन साम्राज्य में किसी चीज की वैल्यू मापने की एक यूनिट की तरह उपयोग किया जाता था. एक पाउंड में 100 पेंसे (पेनी) होते हैं.
मुख्य रुप से यह मुद्रा (पाउंड) यूनाइटेड किंगडम (पाउंड स्टरलिंग), इजिप्ट (इजिप्शियन पाउंड), लेबनान (लेबनीज पाउंड), साउथ सुडान (साउथ सुडानीज पाउंड), सुडान (सुडानीज पाउंड) और सीरिया (सीरिया पाउंड) में चलती है. सामान्यतया पाउंड स्टरलिंग को ही पाउंड के नाम से जाना जाता है. फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में डॉलर, यूरो और येन के बाद यह चौथी सबसे ज्यादा ट्रेड होने वाली करेंसी है.
कीमत
1 पाउंड = 92.37 रुपए (19 फरवरी 2019)
4- येन
येन जापान की आधिकारिक मुद्रा है. डॉलर और यूरो के बाद यह फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में सबसे ज्यादा ट्रेड होने वाली तीसरी करेंसी है. डॉलर, यूरो और पाउंड के बाद इसका इस्तेमाल रिजर्व करेंसी के रूप में भी किया जाता है. जापानी भाषा में येन का मतलब राउंड (गोल) होता है.
कीमत
100 येन= 64.69 रुपए (19 फरवरी 2019)
5- युआन
युआन चीन की आधिकारिक मुद्रा है. हालांकि, हॉन्ग-कॉन्ग और माकाओ में यह चलन में नहीं है. युआन के बैंक नोट एक युआन से लेकर 100 युआन तक हैं. इसका रंग तथा आकार भी अलग-अलग हैं. हॉन्ग-कॉन्ग में मुद्रा के रुप में डॉलर का चलन है.
रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?
अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि क्या USD एक आधार मुद्रा है क्या USD एक आधार मुद्रा है भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.
अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.
इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.
मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.
अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.
अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.
आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.
डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.
यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.
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RBI जून में बना अमेरिकी करेंसी का शुद्ध विक्रेता, 3.719 बिलियन अमेरिकी डॉलर सेल
RBI जून में अमेरिकी मुद्रा का शुद्ध विक्रेता बना रहा। केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के मुताबिक आरबीआई ने उस अवधि में शुद्ध आधार पर 3.719 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बिक्री की। बता दें कि पिछले कुछ दिनों से भारतीय और अमेरिकी मुद्रा में अस्थिरता देखी जा रही है।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जून में अमेरिकी करेंसी का शुद्ध विक्रेता बना हुआ था। आरबीआई ने उस अवधि में शुद्ध आधार पर 3.719 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बिक्री की, जैसा कि केंद्रीय बैंक के आंकड़ों से पता चलता है। गुरुवार को जारी अगस्त 2022 के लिए आरबीआई के मासिक बुलेटिन के अनुसार, समीक्षाधीन महीने में केंद्रीय बैंक ने हाजिर बाजार से 18.96 बिलियन अमेरिकी डॉलर की खरीदारी की और 22.679 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बिक्री की।
मई 2022 में RBI ने की इतने बिलियन अमेरिकी डॉलर की खरीदारी
आपको बता दें कि जून 2021 में हाजिर बाजार से शुद्ध आधार पर 18.633 बिलियन अमेरिकी डॉलर की खरीद के बाद आरबीआई ग्रीनबैक का शुद्ध खरीदार था। मई 2022 में केंद्रीय बैंक ने 2.001 बिलियन अमेरिकी डॉलर की खरीदारी की। इसने महीने के दौरान 10.143 अरब डॉलर की खरीदारी की और 8.142 अरब डॉलर की बिक्री की।
वित्त वर्ष 2022 के दौरान, केंद्रीय बैंक ने अब तक 17.312 बिलियन अमेरिकी डॉलर की शुद्ध खरीद की है। इसने वित्त वर्ष 2022 में हाजिर बाजार में 113.991 बिलियन अमेरिकी डॉलर की खरीदारी की और 96.679 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बिक्री की है। आंकड़ों से पता चलता है कि वायदा डॉलर के बाजार में जून के अंत में बकाया शुद्ध खरीद 30.856 अरब अमेरिकी डॉलर रही, जो मई में 49.191 अरब अमेरिकी डॉलर थी।
आपको बता दें कि पिछले कुछ दिनों से बाजार में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। चाहे वो भारतीय रुपया हो या अमेरिका की करेंसी डॉलर, सभी मुद्राओं में अस्थिरता देखी जा रही है। महंगाई के इस दौर में बड़े-बड़े देश अपनी केंद्रीय बैंकों के माध्यम से ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, जिसका असर बाजार पर पड़ रहा है और बाजार प्रभावित होने के कारण मुद्रा प्रभावित हो रही है।
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