सबसे बड़ी सरकारी कंपनियों का CPSE ETF निवेश के लिए खुला, क्या आपको इसमें पैसा लगाना चाहिए?
सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (CPSE) का एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) निवेश के लिए खुल गया है. यह इस ईटीएफ की 7वीं ख . अधिक पढ़ें
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- Last Updated : January 31, 2020, 10:04 IST
नई दिल्ली. सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (CPSE) का एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) निवेश के लिए खुल गया है. यह इस ईटीएफ की 7वीं खेप है. इस पर एक्सपर्ट्स कहते हैं कि लॉन्ग टर्म के इक्विटी म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वाले इसे दूर रहें.भले ही वैल्यूएशन कम हों और डिस्काउंट की पेशकश की जा रही हो. इस तरह के फंड केंद्रित होते हैं. इसलिए इनमें ज्यादा अस्थिरता रहती है. इसमें सिर्फ 12 शेयर हैं जिनमें से चार कंपनियों कोल इंडिया, NTPC, ONGC और पावर ग्रिड का हिस्सा 79.5 फीसदी है. इसके चलते इसमें उथल-पुथल का खतरा ज्यादा है. आपको बता दें कि CPSE ETF का पहला न्यू फंड ऑफर मार्च 2014 में लॉन्च हुआ था. फिर जनवरी 2017 में इसके जरिए 13,705 करोड़ रुपये जुटाए गए थे. इसके बाद मार्च 2017 और नवंबर 2018 में इसकी पेशकश की गई थी.
आपको बता दें कि इसके पहले के ETF के जरिए सरकार ने 50 हजार करोड़ रुपये जुटाए हैं. मार्च 2014 में पेश किए गए पहले ट्रांच में 3 हजार करोड़ रुपये, जनवरी 2017 में 6 हजार करोड़ रुपये, मार्च 2017 में 2,500 करोड़ रुपये, नवंबर 2018 में 17 हजार करोड़ रुपये, मार्च 2019 में 10 हजार करोड़ रुपये और जुलाई 2019 में कुल 11,500 करोड़ रुपये जुटाया गया था.
पुराने CPSE ETF ने कितना दिया रिटर्न
पिछले एक साल में सीपीएसई ईटीएफ में 6.53 फीसदी गिरावट आई है जबकि इस दौरान BSE सेंसेक्स ने 13.72 फीसदी का रिटर्न दिया है. एक्सपर्ट्स का कहना हैं कि कम वैल्यूएशन और ऊंची डिविडेंड यील्ड वाली सेफ पीएसयू में निवेश करने के बुनियादी सिद्धांत अब भी दमदार है लेकिन पिछले CPSE ETF को लेकर इनवेस्टर्स का अनुभव अच्छा नहीं रहा है.
वैल्यूएशन के लिहाज से निफ्टी CPSE इंडेक्स में 8.76 P/E पर ट्रेड हो रहा है जबकि इसके मुकाबले निफ्टी 50 का P/E 28 चल रहा है. इसके अलावा निफ्टी CPSE की डिविडेंड यील्ड 5.32 फीसदी है. वहीं, निफ्टी 50 की डिविडेंड यील्ड 1.24 फीसदी चल रही है.
न्यूनतम निवेश 5 हजार रुपये
(1) छोटे निवेशक कम से कम 5 हजार रुपये तक का निवेश कर सकते हैं. वहीं, गैर-संस्थागत निवेशक और क्वालिफाइड संस्थापक बायर्स के लिए यह सीमा 2 लाख रुपये है. एंकर इन्वेस्टर्स के लिए न्यूनतम निवेश की सीमा 10 करोड़ रुपये है.
(2) हर CPSE ट्रांच डिस्काउंट के साथ आता है, जोकि रिटेल निवेशकों के लिए 3-5 फीसदी के करीब होता है. वर्तमान में इस सातवें ट्रांच के लिए निवेशकों को 3 फीसदी का डिस्काउंट मिलेगा.
(3) सीपीएसई ईटीएफ में 12 पब्लिक सेक्टर कंपनियां शामिल है, जिनमें अधिकतर एनर्जी और पावर सेक्टर की कंपनियां है.
(4) 23 जनवरी तक बीते एक, तीन और पांच साल में इनका कंपाउंड एन्युअल ग्रोथ रेट क्रमश: -6.36 फीसदी, -6.35 फीसदी और -2.59 फीसदी रहा है. ONGC, NTPC, कोल इंडिया, इंडियन ऑयल, REC, PFC, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑयल इंडिया, NBCC इंडिया, NLC इंडिया और SJVN जैसी कंपनियां शामिल हैं. इन कंपनियों को इंडेक्स में 20 फीसदी तक वेटेज है.
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Gold ETF बेहतर या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, निवेश से पहले ये जानकारी आएगी बहुत काम
Gold ETF बेहतर या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, निवेश से पहले ये जानकारी आएगी बहुत काम Gold ETF is better or sovereign gold bond know very useful information before investing
Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: August 18, 2022 16:46 IST
Photo:INDIA TV Gold ETF vs sovereign gold bond
Gold ETF और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को लेकर निवेशकों में हमेशा कनफ्यूजन की स्थिति होती है। एक बार फिर से RBI सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की दूसरी सीरीज 22 अगस्त से शुरू करने जा रहा है। इसमें निवेशक 26 अगस्त तक निवेश कर पाएंगे। अब सवाल उठता है कि गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना बेहतर होगा या सॉवरेन बॉन्ड? अगर आपके मन में भी यह सवाल हैं तो हम उसका पूरा समाधान यहां दे रहे हैं।
दोनों उत्पाद में निवेश की सीमा
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ, दोनो में निवेशकों प्रति 1 ग्राम गोल्ड की कीमत से निवेश की शुरुआत कर सकते हैं। वहीं, गोल्ड ईटीएफ में अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। यानी आप अपनी मर्जी के अनुसार निवेश कर सकते हैं, जबकि सॉवरेन बॉन्ड में एक व्यक्ति एक वित्त वर्ष में अधिकतम 4 किलोग्राम सोने की कीमत के बराबर ही निवेश कर सकता है।
किसे खरीदना-बेचना आसान
गोल्ड ईटीएफ को आप स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर कैश ट्रेडिंग के लिए निर्धारित समय के दौरान कभी भी खरीद या बेच सकते हैं। लेकिन सॉवरे गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई समय-समय पर जारी करती है। ऐसे में जब चाहें इसे बेच नहीं सकते हैं। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांचवें, छठे और सातवें वर्ष में बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है। वहीं, डीमैट फॉर्म में इस बॉन्ड को लेने वाले इसे स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग आवर्स के दौरान कभी भी बेच सकते हैं। ऐसे में अगर आप वैसे निवेशक हैं जो कभी भी अपना पैसा निकालने में यकीन रखते हैं तो आपके लिए गोल्ड ईटीएफ बेहतर होगा।
डीमैट अकाउंट की जरूरत?
गोल्ड ईटीएफ के ETF की सीमाएं क्या हैं? लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी है। वहीं, साॅवरेन गोल्ड बॉन्ड के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी नहीं है। हां, अगर आप सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की एक्सचेंज पर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो आपको बॉन्ड को डीमैट फॉर्म में लेना होगा, जिसके लिए डीमैट अकाउंट का होना जरूरी है। सबस्क्रिप्शन के दौरान ही आपको सॉवरिन बॉन्ड फिजिकल फॉर्म (सर्टिफिकेट) के अतिरिक्त डीमैट फार्म में भी लेने का विकल्प मिलता है।
निवेश ETF की सीमाएं क्या हैं? पर किसमें ज्यादा जोखिम
साॅवरेन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई जारी करती है। इसलिए इसमें डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ म्यूचुअल फंड हाउस कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है। ऐसे में इसमें डिफॉल्ट का खतरा होता है लेकिन वह काफी कम होता है।
किस पर कितना ब्याज
साॅवरेन बॉन्ड पर 2.5 फीसदी की दर से सालाना ब्याज मिलता है। यह हर 6 महीने में देय होता है। अंतिम ब्याज मैच्योरिटी पर मूलधन के साथ दिया जाता है। ब्याज की रकम टैक्सेबल होती है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ पर आपको कुछ भी ब्याज नहीं मिलता। यानी आप ब्याज से इनकम चाहते हैं और सोने की बढ़ी कीमत का लाभ तो सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड एक बेहतर उत्पाद है।
ब्रोकरेज चार्ज
गोल्ड ईटीएफ मैनेज करने के एवज में म्यूचुअल फंड हाउस निवेशक से टोटल एक्सपेंस रेश्यो (टीईआर) चार्ज वसूलते हैं। जब भी आप यूनिट खरीदते या बेचते हो ब्रोकर को ब्रोकरेज चार्ज देना होता है। जबकि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में इस तरह का कोई अतिरिक्त एक्सपेंस नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन बॉन्ड को एक्सचेंज पर खरीदोगे या बेचोगे तो आपको ब्रोकरेज चार्ज देना होगा। जरूरत पड़ने पर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकता है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ पर यह सुविधा नहीं है।
टैक्स का बोझ
अगर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को मैच्योरिटी के बाद रिडीम करते हैं तो आपको रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन गोल्ड ईटीएफ पर इस तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं है। गोल्ड ईटीएफ पर टैक्स डेट फंड की तरह लगता है। अगर तरलता की बात करें तो गोल्ड ईटीएफ को स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी खरीदा बेचा जा सकता है। मतलब लिक्विडिटी की समस्या यहां नहीं है। लेकिन सॉवरेन बॉन्ड को कम से कम 5 साल के बाद ही रिडीम किया जा सकता है। लेकिन मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर टैक्स बेनिफिट से हाथ धोना पड़ेगा।
ELSS Vs Gold Mutual Fund: सिर्फ ₹500 के निवेश से करोड़ों बनाने का सौदा, ऐसे कमाल करती हैं ये 2 शानदार स्कीम
ELSS Vs Gold Mutual Fund: कम इनवेस्टेमेंट में अच्छे रिटर्न वाली स्कीम ढूंढ रहे हैं ETF की सीमाएं क्या हैं? तो ये दो स्कीम आपके काम की हैं. सिर्फ 500 रुपए से दोनों स्कीम में निवेश हो सकता है.
ELSS Vs Gold Mutual Fund: निवेश की शुरुआत कर रहे हों या फिर पहले के निवेश को बढ़ाना चाहते हैं. आपके लिए म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) सही है. लेकिन, फायदे का सौदा वही, जहां निवेश बढ़ने के साथ आपकी वेल्थ भी बढ़े. बंपर रिटर्न के लिए कुछ ही ऑप्शन ETF की सीमाएं क्या हैं? ऐसे ETF की सीमाएं क्या हैं? हैं, जहां निवेश किया जा सकता है. आप इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) या गोल्ड म्यूचुअल फंड (Gold Mutual fund) में निवेश कर सकते हैं. ये दोनों ही ऑप्शन लॉन्ग टर्म निवेश (Long term Investment) के लिए सही माने जाते हैं.
ELSS- निवेश का क्या है फायदा?
3 साल का लॉक-इन पीरियड: ELSS में 3 साल का लॉक-इन पीरियड (Lock in period) होता है, मतलब जो पैसा आपने निवेश किया है वो 3 साल से पहले नहीं निकाल सकते. यह इस स्कीम का बढ़िया फीचर है. दूसरी स्कीम्स की तुलना में इसका लॉक-इन पीरियड काफी कम है.
500 रुपए से करें शुरुआत: ELSS में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए सिर्फ 500 रुपए से शुरुआत की जा सकती है. अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है. निवेश करने वालों को इसमें दो तरह के ऑप्शन मिलते हैं. इनमें पहला है ग्रोथ और दूसरा है डिविडेंड पे आउट. ग्रोथ ऑप्शन में पैसा लगातार स्कीम में रहता है.
कैसे ले सकते हैं फायदा: डिविडेंड ऑप्शन में कंपनियां समय-समय पर फायदा देती हैं. डिविडेंड ऑप्शन (Dividend option) वाली योजनाओं में साल में एक बार डिविडेंड मिल सकता है. हालांकि, कुछ योजनाओं ने तो साल में एक बार से ज्यादा डिविडेंड दिया है.
इनकम टैक्स 80C में टैक्स छूट: एक वित्त वर्ष में आप 1.5 लाख रुपए तक निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट का फायदा ले सकते हैं. इसके अलावा ELSS में निवेश पर होने वाला लाभ और रिडम्पशन (निवेश यूनिट को बेचना) से मिलने वाली राशि भी पूरी तरह टैक्स फ्री होती है.
1 लाख रुपए तक कोई टैक्स नहीं: म्यूचुअल फंड से एक साल में मिलने वाले 1 लाख रुपए तक लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) को आयकर से छूट है. मतलब आपको 1 लाख रुपए तक कोई टैक्स नहीं देना होता है. इस सीमा से ज्यादा फायदा होने पर 10% की दर से टैक्स देना होता है.
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गोल्ड म्यूचुअल फंड में कैसे करें शुरुआत?
गोल्ड ETF में ही होता है निवेश: गोल्ड म्यूचुअल फंड, गोल्ड ETF का ही एक हिस्सा है. ये ऐसी योजनाएं हैं जो गोल्ड ETF में निवेश करती हैं. गोल्ड म्यूचुअल फंड सीधे फिजिकल सोने में निवेश नहीं करते. गोल्ड म्यूचुअल फंड ओपन-एंडेड निवेश प्रोडक्ट है, जो गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (Gold ETF) में निवेश करते हैं और उनका नेट एसेट वैल्यू (NAV) ETFs के प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है.
500 रुपए से शुरुआत: मंथली SIP के जरिए 500 रुपए के साथ गोल्ड म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू कर सकते हैं. इसके निवेश करने के लिए डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती है. आप किसी भी म्यूचुअल फंड हाउस के जरिए इसमें निवेश कर सकते हैं.
लॉन्ग टर्म गेन पर 20% टैक्स: गोल्ड म्युचुअल फंड में 3 साल से ज्यादा के निवेश को लॉन्ग-टर्म माना जाता है. इसके मुनाफे को लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) कहा जाता है. सोने पर LTCG पर इंडेक्सेशन बेनिफिट (प्लस सरचार्ज, अगर कोई हो और सेस) के साथ 20% की दर से टैक्स लगता है. वहीं, शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) पर निवेशक को लागू स्लैब दर के मुताबिक टैक्स चुकाना होता है.
1 साल का एग्जिट लोड: गोल्ड म्यूचुअल फंड में एग्जिट लोड हो सकता है, जो आम तौर पर 1 साल तक होता है. म्यूचुअल फंड हाउस एग्जिट लोड तब लगाते हैं जब आप एक निश्चित अवधि से पहले ही अपने निवेश का मुनाफा वसूलना चाहते हैं. एग्जिट लोड निवेशकों को बाहर जाने से रोकने के लिए लगाया जाता है. अलग-अलग म्यूचुअल फंड का एग्जिट लोड लगाने का समय अलग होता है. एग्जिट लोड आपकी NAV का छोटा सा हिस्सा होता है, तो आपके बाहर जाने पर काटा जाता है.
Gold ETF बेहतर या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, निवेश से पहले ये जानकारी आएगी बहुत काम
Gold ETF बेहतर या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड, निवेश से पहले ये जानकारी आएगी बहुत काम Gold ETF is better or sovereign gold bond know very useful information before investing
Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: August 18, 2022 16:46 IST
Photo:INDIA TV Gold ETF vs sovereign gold bond
Gold ETF और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को लेकर निवेशकों में हमेशा कनफ्यूजन की स्थिति होती है। एक बार फिर से RBI सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की दूसरी सीरीज 22 अगस्त से शुरू करने जा रहा है। इसमें निवेशक 26 अगस्त तक निवेश कर पाएंगे। अब सवाल उठता है कि गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना बेहतर होगा या सॉवरेन बॉन्ड? अगर आपके मन में भी यह सवाल हैं तो हम उसका पूरा समाधान यहां दे रहे हैं।
दोनों उत्पाद में निवेश की सीमा
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ, दोनो में निवेशकों प्रति 1 ग्राम गोल्ड की कीमत से निवेश की शुरुआत कर सकते हैं। वहीं, गोल्ड ईटीएफ में अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। यानी आप अपनी मर्जी के अनुसार निवेश कर सकते हैं, जबकि सॉवरेन बॉन्ड में एक व्यक्ति एक वित्त वर्ष में अधिकतम 4 किलोग्राम सोने की कीमत के बराबर ही निवेश कर सकता है।
किसे खरीदना-बेचना आसान
गोल्ड ईटीएफ को आप स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर कैश ETF की सीमाएं क्या हैं? ट्रेडिंग के लिए निर्धारित समय के दौरान कभी भी खरीद या बेच सकते हैं। लेकिन सॉवरे गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई समय-समय पर जारी करती है। ऐसे में जब चाहें इसे बेच नहीं सकते हैं। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांचवें, छठे और सातवें वर्ष में बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है। वहीं, डीमैट फॉर्म में इस बॉन्ड को लेने वाले इसे स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग आवर्स के दौरान कभी भी बेच सकते हैं। ऐसे में अगर आप वैसे निवेशक हैं जो कभी भी अपना पैसा निकालने में यकीन रखते हैं तो आपके लिए गोल्ड ईटीएफ बेहतर होगा।
डीमैट अकाउंट की जरूरत?
गोल्ड ईटीएफ के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी है। वहीं, साॅवरेन गोल्ड बॉन्ड के लिए डीमैट अकाउंट होना जरूरी नहीं है। हां, अगर आप सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की एक्सचेंज पर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो आपको बॉन्ड को डीमैट फॉर्म में लेना होगा, जिसके लिए डीमैट अकाउंट का होना जरूरी है। सबस्क्रिप्शन के दौरान ही आपको सॉवरिन बॉन्ड फिजिकल फॉर्म (सर्टिफिकेट) के अतिरिक्त डीमैट फार्म में भी लेने का विकल्प मिलता है।
निवेश पर किसमें ज्यादा जोखिम
साॅवरेन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई जारी करती है। इसलिए इसमें डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ म्यूचुअल फंड हाउस कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है। ऐसे में इसमें डिफॉल्ट का खतरा होता है लेकिन वह काफी कम होता है।
किस पर कितना ब्याज
साॅवरेन बॉन्ड पर 2.5 फीसदी की दर से सालाना ब्याज मिलता है। यह हर 6 महीने में देय होता है। अंतिम ब्याज मैच्योरिटी पर मूलधन के साथ दिया जाता है। ब्याज की रकम टैक्सेबल होती है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ पर आपको कुछ भी ब्याज नहीं मिलता। यानी आप ब्याज से इनकम चाहते हैं और सोने की बढ़ी कीमत का लाभ तो सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड एक बेहतर उत्पाद है।
ब्रोकरेज चार्ज
गोल्ड ईटीएफ मैनेज करने के एवज में म्यूचुअल फंड हाउस निवेशक से टोटल एक्सपेंस रेश्यो (टीईआर) चार्ज वसूलते हैं। जब भी आप यूनिट खरीदते या बेचते हो ब्रोकर को ब्रोकरेज चार्ज देना होता है। जबकि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में इस तरह का कोई अतिरिक्त एक्सपेंस नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन बॉन्ड को एक्सचेंज पर खरीदोगे या बेचोगे तो आपको ब्रोकरेज चार्ज देना होगा। जरूरत पड़ने पर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकता है। वहीं, गोल्ड ईटीएफ पर यह सुविधा नहीं है।
टैक्स का बोझ
अगर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को मैच्योरिटी के बाद रिडीम करते हैं तो आपको रिटर्न पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन गोल्ड ईटीएफ पर इस तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं है। गोल्ड ईटीएफ पर टैक्स डेट फंड की तरह लगता है। अगर तरलता की बात करें तो गोल्ड ईटीएफ को स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी खरीदा बेचा जा सकता है। मतलब लिक्विडिटी की समस्या यहां नहीं है। लेकिन सॉवरेन बॉन्ड को कम से कम 5 साल के बाद ही रिडीम किया जा सकता है। ETF की सीमाएं क्या हैं? लेकिन मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर टैक्स बेनिफिट से हाथ धोना पड़ेगा।
ELSS Vs Gold Mutual Fund: सिर्फ ₹500 के निवेश से करोड़ों बनाने का सौदा, ऐसे कमाल करती हैं ये 2 शानदार स्कीम
ELSS Vs Gold Mutual Fund: कम इनवेस्टेमेंट में अच्छे रिटर्न वाली स्कीम ढूंढ रहे हैं तो ये दो स्कीम आपके काम की हैं. सिर्फ 500 रुपए से दोनों स्कीम में निवेश हो सकता है.
ELSS Vs Gold Mutual Fund: निवेश की शुरुआत कर रहे हों या फिर पहले के निवेश को बढ़ाना चाहते हैं. आपके लिए म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) सही है. लेकिन, फायदे का सौदा वही, जहां निवेश बढ़ने के साथ आपकी वेल्थ भी बढ़े. बंपर रिटर्न के लिए कुछ ही ऑप्शन ऐसे हैं, जहां निवेश किया जा सकता है. आप इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) या गोल्ड म्यूचुअल फंड (Gold Mutual fund) में निवेश कर सकते हैं. ये दोनों ही ऑप्शन लॉन्ग टर्म निवेश (Long term Investment) के लिए सही माने जाते हैं.
ELSS- निवेश का क्या है फायदा?
3 साल का लॉक-इन पीरियड: ELSS में 3 साल का लॉक-इन पीरियड (Lock in period) होता है, मतलब जो पैसा आपने निवेश किया है वो 3 साल से पहले नहीं निकाल सकते. यह इस स्कीम का बढ़िया फीचर है. दूसरी स्कीम्स की तुलना में इसका लॉक-इन पीरियड काफी कम है.
500 रुपए से करें शुरुआत: ELSS में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए सिर्फ 500 रुपए से शुरुआत की जा सकती है. अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है. निवेश करने वालों को इसमें दो तरह के ऑप्शन मिलते हैं. इनमें पहला है ग्रोथ और दूसरा है डिविडेंड पे आउट. ग्रोथ ऑप्शन में पैसा लगातार स्कीम में रहता है.
कैसे ले सकते हैं फायदा: डिविडेंड ऑप्शन में कंपनियां समय-समय पर फायदा देती हैं. डिविडेंड ऑप्शन (Dividend option) वाली योजनाओं में साल में एक बार डिविडेंड मिल सकता है. हालांकि, कुछ योजनाओं ने तो ETF की सीमाएं क्या हैं? साल में एक बार से ज्यादा डिविडेंड दिया है.
इनकम टैक्स 80C में टैक्स छूट: एक वित्त वर्ष में आप 1.5 लाख रुपए तक निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट का फायदा ले सकते हैं. इसके अलावा ELSS में निवेश पर होने वाला लाभ और रिडम्पशन (निवेश यूनिट को बेचना) से मिलने वाली राशि भी पूरी तरह टैक्स फ्री होती है.
1 लाख रुपए तक कोई टैक्स नहीं: म्यूचुअल फंड से एक साल में मिलने वाले 1 लाख रुपए तक लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) को आयकर से छूट है. मतलब आपको 1 लाख रुपए तक ETF की सीमाएं क्या हैं? कोई टैक्स नहीं देना होता है. इस सीमा से ज्यादा फायदा होने पर 10% की दर से टैक्स देना होता है.
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गोल्ड म्यूचुअल फंड में कैसे करें शुरुआत?
गोल्ड ETF में ही होता है निवेश: गोल्ड म्यूचुअल फंड, गोल्ड ETF का ही एक हिस्सा है. ये ऐसी योजनाएं हैं जो गोल्ड ETF में निवेश करती हैं. गोल्ड म्यूचुअल फंड सीधे फिजिकल सोने में निवेश नहीं करते. गोल्ड म्यूचुअल फंड ओपन-एंडेड निवेश प्रोडक्ट है, जो गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (Gold ETF) में निवेश करते हैं और उनका नेट एसेट वैल्यू (NAV) ETFs के प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है.ETF की सीमाएं क्या हैं?
500 रुपए से शुरुआत: मंथली SIP के जरिए 500 रुपए के साथ गोल्ड म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू कर सकते हैं. इसके निवेश करने के लिए डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती है. आप किसी भी म्यूचुअल फंड हाउस के जरिए इसमें निवेश कर सकते हैं.
लॉन्ग टर्म गेन पर 20% टैक्स: गोल्ड म्युचुअल फंड में 3 साल से ज्यादा के निवेश को लॉन्ग-टर्म माना जाता है. इसके मुनाफे को लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) कहा जाता है. सोने पर LTCG पर इंडेक्सेशन बेनिफिट (प्लस सरचार्ज, अगर कोई हो और सेस) के साथ 20% की दर से टैक्स लगता है. वहीं, शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) पर निवेशक को लागू स्लैब दर के मुताबिक टैक्स चुकाना होता है.
1 साल का एग्जिट लोड: गोल्ड म्यूचुअल फंड में एग्जिट लोड हो सकता है, जो आम तौर पर 1 साल तक होता है. म्यूचुअल फंड हाउस एग्जिट लोड तब लगाते हैं जब आप एक निश्चित अवधि से पहले ही अपने निवेश का मुनाफा वसूलना चाहते हैं. एग्जिट लोड निवेशकों को बाहर जाने से रोकने के लिए लगाया जाता है. अलग-अलग म्यूचुअल फंड का एग्जिट लोड लगाने का समय अलग होता है. एग्जिट लोड आपकी NAV का छोटा सा हिस्सा होता है, तो आपके बाहर जाने पर काटा जाता है.
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